कैसे धरती से 435 किलोमीटर की ऊंचाई पर प्रथम प्रयोगशाला “स्काईलैब” “Skylab” का निर्माण कर उसे कार्य करने लायक बनाया गया?

धरती की कक्षा में घूमती स्काईलैब

स्काईलैब मात्र एक यान ही था जिसमें तीन कमरों के बराबर जगह थी, और उसमें अंतरिक्ष यात्रियों को तरह-तरह के भौतिक, जैविक और चिकित्सा संबंधी कुछ प्रयोग करने थे, इसीलिए उसे ‘स्काईलैब’ नाम दिया गया। एक प्रयोगात्मक अंतरिक्ष स्टेशन की योजना बनायी गयी थी जो धरती की कक्षा में परिक्रमा करता रहे और परीक्षण-हेतु वैज्ञानिक अन्य वाहनों द्वारा वहां जाकर अपने यान से उसे जोड़ लें और सुरंग के जरिये उसमें प्रवेश करें तथा कार्य की समाप्ति पर पुनः अपने यान में वापस आ जायें और अपने यान को अंतरिक्ष-स्टेशन से अलग कर पृथ्वी पर लौट आयें। यह योजना स्काईलैब के रूप में सफल हुई।

skylab in 1973

स्काईलैब के निर्धारित कार्यक्रम

पूर्व-निर्धारित कार्यक्रम योजना के अनुसार 30 अप्रैल, 1973 को स्काईलैब को छोड़े जाने का विचार था पर कुछ तकनीकी बाधाओं के कारण वह योजना असफल रही और अन्त में 14 मई की रात के 11 बजे (भारतीय समयानुसार) स्काईलैब केपकेनेडी, फ्लोरिडा (अमेरिका) से छोड़ी गयी जो धरती से लगभग 435 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो गयी। यह 93 मिनट में धरती का एक पूरा चक्कर लगा लेती थी।

योजना यह थी कि स्काईलैब आठ मास तक पृथ्वी की परिक्रमा करती रहेगी और इसमें पांच मास तक के समय में तीन-तीन सदस्यों वाले चालक दल प्रयोगशाला पर कार्य करेंगे। प्रयोगशाला में कार्य करने वाले प्रत्येक दल में तीन सदस्य थे।

प्रथम दल-
सी. कोनराड (कमांडर)
जे. पी. केरविन (विज्ञान पॉयलट)
पी. जी. विटूज (चालक)

द्वितीय दल-
ए. एल. वीन
ओ. के. गेरियट
जे. आर. लाउजमा

तृतीय दल-
जी.पी. कार
ई.जी. गिबसन
डब्ल्यू. आर. पग

प्रथम दल 15 मई, 1973 को जाने वाला था जो वहां 28 दिन तक रहता और 12 जून को पृथ्वी पर वापस आता। द्वितीय दल 8 अगस्त को जाकर 56 दिन तक कार्य करने के पश्चात 4 अक्टूबर को वापस आता तथा तीसरा दल 9 नवम्बर को जाकर स्काईलैब में 56 दिन तक कार्य जनवरी, 1974 को वापस आता।
करेने के पश्चात 5

कार्यक्रम में फेर-बदल

लेकिन कार्यक्रम में परिवर्तन हो गया क्योंकि 15 मई को प्रथम दल के जो तीन यात्री जाने वाले थे, न जा सके। 15 मई को स्काईलैब से मिले रेडियो संकेतों से पता चला कि प्रयोगशाला के अंदर एक भाग का तापमान बढ़ गया है। अमेरिका की ‘राष्ट्रीय उड्डयन और अंतरिक्ष प्रशासन’ (नासा) संस्था ने बताया कि तापक्रम को नियंत्रित करने का प्रयत्न किया जा रहा है लेकिन दूसरे दिन भी प्रयोगशाला का ताप नियमित न हो सका और यात्रा 25 मई तक के लिए स्थगित कर दी गयी।

स्काईलैब की मरम्मत

अब वैज्ञानिकों के सामने स्काईलैब को बचाने की समस्या आयी, अन्यथा 292,140 लाख डालर (लगभग 2000 करोड़ रुपये) की लागत से बनी स्काईलैब रूपी तब तक की सबसे बड़ी योजना के असफल होने की पूरी संभावना थी। प्रयोगशाला के गर्म हिस्से का ताप बढ़कर 49 डिग्री से0ग्रे0 हो गया था। सूक्ष्म उल्काओं के प्रहार से रक्षा के लिए स्काईलैब पर एल्युमिनियम की एक हल्की-सी परत चढ़ायी गयी थी जो स्काईलैब के प्रक्षेपण के 63 सेकंड बाद ही नष्ट हो गयी थी और इसी कारण स्काईलैब के ताप में वृद्धि हो गयी थी। प्रयोगशाला को जलने के भय से बचाने के लिए वैज्ञानिक अब सूर्य-कवच के निर्माण में जुट गये। स्काईलैब के अंतरिक्ष यात्री जो प्रक्षेपण के विलंबित किये जाने के बाद पृथ्वी पर ही थी, ह्यूस्टन (टैक्सास) के अन्तरिक्ष केन्द्र में मरम्मत के लिए प्रशिक्षण लेने लगे। हण्ट्सविल (अलावामा) के मार्शल अन्तरिक्ष केन्द्र में इंजीनियर ऐसे औजार तैयार करने में जुट गये जिसकी आवश्यकता अन्तरिक्ष यात्रियों को पड़ सकती थी। मार्शल के केन्द्र में ही, अन्तरिक्ष यात्री रसेल एल० शिवकार्ट ने पानी के एक बड़े तालाब में, जिसमें स्काईलैब का मॉडल भी था, मरम्मत के लिए प्रस्तावित तरीकों का अभ्यास किया। इस प्रकार श्विकार्ट ने गोता लगाने के सहायक साधनों के साथ तालाब में तैरते हुए मरम्मत के उन सुझाये हुए तरीकों की जांच की जो स्काईलैब के अन्तरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की कक्षा में करना पड़ सकता था। अन्त में इन तमाम प्रकार की तैयारियों के साथ तीनों अन्तरिक्ष यात्री – सी० कोनराड, जे0 केरविन आर पी० विट्ज, जो काफी लम्बे अरसे से अपोलो यान को स्काईलैब से जोड़कर तीनों यात्रियों ने गैस मास्क पहनकर 26 मई को स्काईलैब में प्रवेश किया। जिस छातानुमा चादर (कवच ) को यान पर फैलाना था, वहां पहुंचकर कोनराड और विट्ज ने उसे स्काईलैब की दूसरी ओर धकेलकर बाहर किया। बाहर निकलते ही छाता स्वयं खुल गया और इस प्रकार योजना सफल हो गयी। उन्होंने टेलीविजन कैमरा चालू कर दिया जिससे कि पृथ्वी से ही देखकर हर खराबी का अनुमान लगाया जा सके। इस सुरक्षा-व्यवस्था के बाद स्काईलैब का तापमान सामान्य होने लगा और अन्ततः 31 मई को सामान्य हो गया।

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यात्रियों की रवानगी और वापसी

25 मई को प्रथम दल रवाना हुआ और इस प्रकार तीनों दल के यात्री क्रमशः 28, 59 और 84 दिन तक प्रयोगशाला में रहकर कार्य करते रहे। अन्तिम दल ने 8 फरवरी, 1974 को इससे विदा ली। लगभग 9 मा स्काईलैब सक्रिय रही। तीनों दल के अन्तरिक्ष-यात्रियों ने अन्तरिक्ष में कुल 171 दिन तक रहकर परीक्षण किया, जो तब तक अन्तरिक्ष में बितायी गयी सबसे लम्बी अवधि थी। पर अब यह रिकार्ड टूट चुका है। रूस द्वारा स्थापित प्रयोगशाला ‘सैल्यूत-7’ में रूसी अन्तरिक्ष यात्री लियोनिद पोपोव और वैलेरि यमिन 270 दिन की अवधि बिताकर गत वर्ष वापस आ चुके हैं। उनकी सकुशल वापसी इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण चरण है।

स्काईलैब की बनावट और कार्य-प्रणाली

आधुनिक उपकरणों से लैस ‘स्काईलैब’ मात्र प्रयोगशाला ही नहीं थी बल्कि वह तीन कमरों वाले मकान की तरह अन्तरिक्ष में घूमती आरामदेय होटल जैसी व्यवस्था थी जिसमें अन्तरिक्ष यात्रियों के स्नान करने के लिए गर्म व ठंडे पानी की व्यवस्था के साथ भोजन पकाने, सोने एवं काम करने-यहां तक कि मनोरंजन एवं व्यायाम भी करने की सारी सुविधाएं उपलब्ध थीं। स्काईलैब 85 टन भारी सिलिंडर की 59 फुट ऊंची और 22 फुट व्यास की थी, जिसमें कार्य करने के लिए 280 घन मीटर खाली स्थान था। 10 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्रफल वाले इसके बेडरूम में खाने की एक मेज, भोजन रखने के लिए फ्रिज, स्टोर तथा बाहर का दृश्य देखने के लिए खिड़की की व्यवस्था थी ।

इस अन्तरिक्ष प्लेटफार्म में आवास संबंधी अत्याधुनिक सुविधाएं तो थीं ही, अन्तरिक्ष-यात्रियों को सबसे बड़ी एक अन्य सुविधा यह थी कि उन्हें भारी-भरकम अन्तरिक्ष पोशाकें नहीं पहननी पड़ीं। ऐसी व्यवस्था की गयी थी कि वे उसी प्रकार के सामान्य वस्त्रों से अपना काम चला सकें जैसे कि वायुयानों में यात्रा करते समय पहने जाते हैं।

इस रोमांचकारी अभियान में यह भी व्यवस्था की गयी थी कि यदि किसी कारणवश निर्धारित समय से पूर्व ही अन्तरिक्ष यात्रियों को स्काईलैब छोड़ना पड़े तो वे स्काईलैब से जुड़े अपने अपोलो में सवार होकर वापस लौट आयें। फिर भी यदि स्काईलैंब से जुड़ा अपोलो यान बेकार हो जाये और किन्हीं परिस्थितियों में स्काईलैब से अलग ही न हो सके तो पृथ्वी से दूसरा अपोलो यान भेजकर अन्तरिक्ष यात्रियों को बचाया जा सके, इसकी पूरी सावधानी बरती गयी थी। सुरक्षा व्यवस्था के अन्तर्गत ऐसी चेष्टा की गयी थी कि ‘स्काईलैब’ के अन्दर आग न लगने पाये, यदि लग जाये तो फैलने न पाये। तात्पर्य यह कि इस मिशन के अन्तरिक्ष यात्रियों के जीवन की पूरी सुरक्षा की व्यवस्था बड़ी सतर्कता से की गयी थी।

 

प्रयोगों की श्रृंखला

8 माह की अवधि में तीनों दल के अन्तरिक्ष-यात्रियों को ‘स्काईलैब’ में रखे हुए यंत्रों के द्वारा 270 तरह के परीक्षण करने थे। पृथ्वी तथा भू-गर्भीय रचना की सूक्ष्म एवं विस्तृत जांच के लिए 6 यंत्र-पुर्जा द्वारा 146 अध्ययन किये गये थे। 44 अध्ययनों का लक्ष्य (8 यंत्रों द्वारा) पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर से सूर्य का और पृथ्वी पर उसके प्रभावों का अध्ययन करना था। 24 वैज्ञानिक प्रयोगों का (12 उपकरणों द्वारा) उद्देश्य अन्य अन्तरिक्षीय पिंडों (ग्रहों) के चित्र खींचना था। इसी प्रकार 26 अध्ययन (18 यंत्रों द्वारा) चिकित्सा विज्ञान अथवा जीव विज्ञान से संबंधित थे।

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वैज्ञानिकों की एक धारणा है कि अन्तरिक्ष की भारहीन परिस्थितियों (शून्य गुरुत्वाकर्षण) में धातुओं के कुछ नितान्त मूल्यवान एवं उपयोगी वस्तुओं का निर्माण किया जा सकता है जैसा कि धरती पर संभव नहीं है। अतः 17 वैज्ञानिक प्रयोगों का उद्देश्य मात्र इसी पूर्व धारणा की सत्यता की जांच करना था कि क्या वास्तव में भारहीनता की स्थिति में ऐसी उपयोगी वस्तुएं निर्मित की जा सकती हैं जो गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी पर नहीं बनायी जा सकतीं ? नौ वैज्ञानिक प्रयोगों का उद्देश्य भावी अन्तरिक्ष यात्राओं में मानव सहित भेजने वाले अन्तरिक्ष यान प्रणालियों के मूल्यांकन एवं उनके विकास में सहायता करना था।

दिन और रात के नियमित जीवन-चक्र के अभाव का जीवधारियों पर क्या असर पड़ता है, इस अध्ययन के लिए 6 चूहे और 700 से अधिक कीड़े अपोलो के कमांडशिप चैम्बर (कक्ष) में रखे गये थे जिन्हें स्काईलैब की सक्रिय अवधि तक वहीं रहकर अन्तरिक्षयात्रियों के साथ वापस आना था। स्काईलैब के उपकरणों को चालू रखने और वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों के लिए आवश्यक विद्युत की मात्रा सूर्य की धूप से ली जाती थी। सूर्य की धूप को विद्युत में परिवर्तित करने वाले यंत्र (सोलर पैनल) तब तक की अन्तरिक्ष-यात्राओं में प्रयुक्त इस प्रकार के यंत्रों में सबसे बड़े थे।

‘स्काईलैब’ में लगे सौ पैनल खुल नहीं पाये थे अतः इस अभियान में व्यवधान उत्पन्न हो गया था परन्तु अन्तरिक्ष-यात्रियों ने इस बाधा को करके अभियान को सफल बनाने में अद्भुत कौशल दिखाया। अपने यान से निकलकर उन्होंने 7 जून को सौ पैनलों को खोल दिया। वास्तव में अन्तरिक्ष में यान से बाहर निकलकर उसकी मरम्मत करना अपने-आप में अभूतपूर्व सफलता थी, अन्यथा उक्त अभियान सफल न हो पाता ।

स्काईलैब अस्वस्थ हो गयी

14 मई को स्काईलैब छोड़ी गयी और 15 मई को स्काईलैब से जो रेडियो संकेत मिले उनसे अमेरिका की विमानन एवं अंतरिक्ष प्रशासन संस्था और संबंधित वैज्ञानिक चिंतित हो गये। स्काईलैब के एक हिस्से में तापमान बढ़ गया था, ऐसी स्थिति में 15 मई को अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले तीनों यात्रियों को प्रयोगशाला में भेजना खतरे से खाली नहीं था। स्काईलैब की बीमारी को दूर करने के प्रयास प्रारंभ हो गये। सी. कोनराड, जे. केरविन और पी. विट्ज – तीनों यात्रियों की यात्रा 25 मई तक स्थगित कर दी गयी।

इधर वैज्ञानिक एक ऐसे कवच को बनाने में जुट गये जिसे स्काईलैब में परदे की तरह लटकाकर सूर्य के ताप से स्काईलैब पर पड़ने वाले बुरे असर को रोका जा सके। अभी यह प्रयास चल ही रहा था कि 22 मई को स्काईलैब से मिले संकेतों के अनुसार उसका एक हिस्सा एकदम ठंडा हो रहा था। ये दोनों ही स्थितियां खतरनाक थीं। एक हिस्से में बढ़ रही ठंडक (सिर्फ 2 डिग्री सें० ग्रे0) और दूसरे भाग में बढ़ रही गर्मी (49 डिग्री सें0 ग्रे0) ! इस गर्मी से प्रयोगशाला के जल जाने का खतरा था तो अधिक ठंड से प्रयोगशाला में लगे पाइप आदि के फट जाने का ।

यह सारी गड़बड़ सौर बैटरियों में हुई खराबी से उत्पन्न हुई थी। ये सौर बैटरियां सूर्य से प्रकाश व ऊर्जा ग्रहण करने को लगायी गयी थीं। तीव्र गर्मी से स्काईलैब में रखी हुई अनेक चीजें नष्ट हो गयीं। ऐसी चीजें नये सिरे से स्काईलैब में पहुंचाने की व्यवस्था भी करती थीं।

25 मई को तीनों यात्रियों को एक विशेष परदा, अर्थात् सूर्य कवच साथ लेकर भेजा गया। सी० कोनराड को यह परदा लगाना था-यान के बाहर आकर शून्य में तैरते हुए। सैटर्न रॉकेट इन यात्रियों को लेकर गया था।

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कोनराड और विट्ज ने सूर्य कवच, जो छतरी की तरह था, यान के बाहर निकालकर स्काईलैब पर तान दिया। इस प्रकार 29,240 लाख डालर की स्काईलैब योजना को वैज्ञानिकों ने मिट्टी में मिलने से बचा लिया। 28 मई को स्काईलैब की खराबी दूर हो गयी और 31 मई से स्काईलैब ने योजनानुसार काम करना शुरू कर दिया।

इस प्रयोगशाला में तीन कमरे थे, लगभग 852 किलोग्राम सूखे भोज्य पदार्थ थे, 2720 किलो पीने का पानी था। यह सब 140 दिन के लिए पर्याप्त था, जबकि यात्रियों को इस प्रयोगशाला में 28 दिन रहना था। इसमें एक अस्पताल भी था जिसमें दिल की बीमारी व हड्डियां जोड़ने तक के साधन थे।

स्काईलैब का अंत

14 मई, 1973 को ‘स्काईलैब’ के प्रक्षेपण के समय अमेरिकी वैज्ञानिकों के अनुसार इसकी जीवन-अवधि दस वर्षों की थी अर्थात् 1983 से पूर्व पृथ्वी के वातावरण में यह प्रवेश नहीं करती। अमेरिकी अन्तरिक्ष केन्द्र -‘नासा’ के वैज्ञानिकों की योजना थी कि तीनों दल के वैज्ञानिकों के वापस आने के बाद इसे और ऊंची कक्षा में स्थापित कर दिया जायेगा जिससे कि यह निर्धारित अवधि तक अन्तरिक्ष में रह सकती। यों नौ मास की सक्रिय अवधि अर्थात् 5 जनवरी, 1974 के बाद यह मात्र निष्क्रिय पिंड ही थी जिसमें अन्तरिक्ष यात्री सारा साजो-सामान छोड़कर वापस लौट आये थे। लेकिन तमाम सावधानियों के बावजूद यह पाया गया कि 1982 के पूर्व ही यह गिर सकती है क्योंकि क्रमशः गति अत्यंत धीमी होती गयी और इसकी बैटरियां सो गयी थीं। धरती से स्काईलैब के सारे संपर्क टूट चुके थे। बड़ी मुश्किल से 6 मार्च, 1977 को उससे क्षण मात्र के लिए संपर्क स्थापित हो सका और फिर हमेशा के लिए टूट गया।

यदि स्काईलैब को और ऊंची कक्षा में स्थापित कर सकना संभव होता तो फिलहाल स्काईलैब के गिरने की आशंका समाप्त हो जाती। फिर इसके लिए शटल यान (ऐसी गाड़ी या अन्तरिक्ष वाहन, जिसे हवाई जहाज की तरह बार-बार अन्तरिक्ष यात्राओं के लिए प्रयोग किया जा सके) जरूरी है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने शटल-निर्माण की जो संभावित अवधि बताय थी, तब तक वह पूरी न हो सकी। अतः शटल के निर्माण में अनावश्यक विलम्ब स्काईलैब के अंत का एक कारण है। यदि समय से शटल यान निर्मित हो सका होता तो उसके साथ बूस्टर इंजन ले जाकर ‘स्काईलैब’ को और ऊंची कक्षा में (इसको ‘भूमि उच्च’ स्थिति भी कहते हैं) स्थापित कर दिया जाता। ज्ञातव्य है कि उपग्रहों का जीवनकाल स्थापित कक्षा की ऊंचाई पर निर्भर करता है। कक्षा की ऊंचाई जितनी अधिक होगी, उपग्रह का जीवनकाल उतना ही अधिक होगा। शटल के समय पर तैयार न हो पाने के कारण इसे उच्च कक्षा में पहुंचाना असंभव था। अतः अमेरिकी ‘राष्ट्रीय उड्डयन एवं अन्तरिक्ष प्रशासन’ (नासा) के वैज्ञानिकों के लिए यह प्रकरण घोर चिंता का विषय बन गया और क्रमशः स्काईलैब धरती की ओर खिंचती चली आयी। अंत में यह स्पष्ट हो गया कि ‘स्काईलैब’ का पृथ्वी को कक्षा में प्रवेश निश्चित है। अंत में ‘नासा’ ने घोषित किया कि जुलाई 1979 के प्रारंभ में स्काईलैब धरती पर कहीं भी गिर सकती है। इस समाचार से दुनिया में भय और आतंक की लहर व्याप्त हो गयी। तमाम गणनाओं के बावजूद अमेरिकी अन्तरिक्षविद् स्काईलैब के गिरने के ठीक समय की घोषणा न कर सके। अमेरिका ने इतनी घोषणा अवश्य की कि स्काईलैब के पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करने से पूर्व चार चेतावनियां दी जायेंगी। पहली चेतावनी चौबीस घंटे पहले दी जायेगी। दूसरी, पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश के 22 घंटे पूर्व, तीसरी 6 घंटे पूर्व और चौथी सूचना कक्षा में प्रवेश करते ही प्रसारित की जायेगी। तीसरी चेतावनी तक यह भी संभव है कि यह अंदाज हो जाय कि यह पृथ्वी के किस क्षेत्र में गिरेगी।

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