सोलर कुकर
यह भोजन पकाने की ऐसी युक्ति है जिसमें सूर्य की ऊर्जा (सौर विकिरण) से खाद्य सामग्री पकती है। इसमे ईंधन की, न कोयले की, न मिट्टी के तेल की अथवा गोबर गैस या बिजली की आवश्यकता होती है। इसे ‘चूल्हा’ कहना ठीक नहीं क्योंकि चूल्हे पर भोजन पकाने के लिए खाद्य सामग्री को बर्तन में रखा जाता है जबकि सोलर कुकर में पकाई जाने वाली सामग्री को उसके भीतर रखा जाता है। कुकर अंग्रेजी शब्द है जिसका अर्थ है ‘पकाने वाला’ ।
सोलर कुकर दो तरह के होते हैं
• जिनमें ऊंचा ताप पाने के लिए सूर्य की किरणों को अवतल दर्पणों या लेंसों की सहायता से केन्द्रित किया जाता है। ये घरेलू इस्तेमाल के लिए उपयुक्त नहीं होते।
• जिनमें सूर्य की किरणों को बहुत कम केन्द्रित किया जाता है। किया जाता है। इन्हें ‘हाट बाक्स’ (गर्म पेटी) कहा जाता है और घरों में इन्हें ही आता है, तो उष्मा शोषित करने वाली काली पट्टी उसे अवशोषित करती जाती है जिससे काली प्लेट का ताप बढ़ता जाता है और क्रमशः 140° से0 हो जाता है, जो खाना पकाने के लिए काफी होता है।
एक सोलर कुकर की उष्मा शोषण क्षमता बढ़ाने के लिए एक दर्पण लगा रहता है। दर्पण पर पड़ने वाली धूप मुड़कर कांच के ढ़क्कन पर जाती है, जिससे मुड़कर बक्से के भीतर। इस तरह सीधी पड़ने वाली किरणों के साथ मिलकर ये कुकर के ताप को बढ़ाती है।
सोलर कुकर को खुले स्थान में-आंगन या छत में जहां धूप आती हो- रखना चाहिए। पकाने वाली सामग्री पहले से तैयार रखी जाती है और एलुमिनियम के डिब्बे काम में लाए जाते हैं। सोलर कुकर को प्रचलित स्टोवों या चूल्हों के सहयोगी के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इससे ईंधन की बचत होती है और भोजन पकाने में समय कम लगता है। दाल, चावल, सब्जियां, आलू आसानी से पकाए जा सकते हैं। मूंगफली के दाने भूने जा सकते हैं और डबल रोटी भी सेंकी जा सकती है।